ईवीएम तू चीज बड़ी है मस्त मस्त हारे नेता हैं रुष्ट पस्त

ईवीएम:

तू चीज बड़ी है मस्त मस्त, हारे नेता हैं रुष्ट पस्त

 

राजेन्द्र कुमार गुप्त:

तारीख पुख्ता तौर पर याद नहीं, लेकिन हां यह दौर तब का है जब टी एन शेषन मुख्य चुनाव आयुक्त थे और निर्वाचन सदन में एक संवाददाता सम्मेलन के दौरान देश में विशेषकर बिहार में चुनावी हिंसा को लेकर मैने प्रश्न किया था कि क्या ड्यूटी करने वाले कर्मचारियों का आयोग ने अलग से जीवन बीमा कराया है। तब चुनाव आयोग से यह प्रश्न उस समय से अब तक बैलेट से मतदान की कलई खोलने के लिए काफी है। और आज जब देश का प्रमुख विपक्षी दल बैलेट पेपर से चुनाव कराने के लिए देश जोड़ो यात्रा निकालने को आतुर है, तो प्रासंगिक और चिंताजनक भी।आजाद भारत के शुरू के पच्चीस-तीस साल तक बैलेट के कंधों पर देश का लोकतंत्र आजादी में कांग्रेस की भूमिका का उत्सव मनाता रहा। लेकिन सत्तर के दशक में जैसे-जैसे देश के लोकतंत्र ने किशोर वय की दहलीज पर कदम रखा और कांग्रेस का नेतृत्व और शासन की बागडोर दूसरी पीढी के हाथ में पहुंचीे, कांग्रेस के एकाधिकार को चुनौती मिलना शुरू हो गई। विपक्ष ने न केवल संसद में संखाबल बढाया, बल्कि कई राज्यों में अकेले या मिलीजुली सरकारें बना लीं। राजनीति का आदर्श -सेवा नेपथ्य में चली गई और राजनीति में राजतंत्र के जमाने के साम दाम दंड भेद के दांव चलने लगे। इस दौड़ में पहले बाहुबली प्रमुख राजनीतिक दलों के लिए वोट डालने से धमका कर रोकने सेे लेकर मतपेटियां लूटने तक का काम करने लगे। उनकी हिस्सेदारी यहीं तक सीमित नहीं रही, बहुत कम समय में वे न केवल राजनीतिक दलों के टिकट पर विधायक और मंत्री बनने लगे। चुनाव जो गुजरे सालों मे लोकतंत्र का उत्सव लगते थे, कब संग्राम और हिंसा में तब्दील हो गए, पता ही नहीं चला। चुनावी हिंसा अखबारों की सुर्खियां बनने लगी, बेलेट पर बुलेट हावी होने लगी। चुनाव आयोग लाचार आने लगा। ऐसे में टीएन शेषन जैसे चुनाव आयुक्त ने थोड़ी राहत जरूर दिलाई, लेकिन जितनी बड़ी चुनौती थी उसमें यह नाकाफी था। जन प्रतिनिधित्व कानून में संशोधन भी समस्या से जूझतंे जरूर लगे, लेकिन जीतते नहीं ।कहते हैं जब अंधेरा घटाटेाप हो तब कहीं से उम्मीद की किरण प्रकट होती है। चुनाव आयोग की टेक्नीकल एक्सपर्ट कमेटी ने भारत इलेक्टृानिक लिमिटेड और इलेक्टृानिक कारपोरेशन आफ इंडिया लिमिटेड के साथ मिलकर देश और दुनिया की पहली इलेक्टृानिक वोटिंग मशीन यानी ईवीएम का निर्माण किया। इस मशीन की खास बात यह है कि यह न तो बाहर की बिजली आपूर्ति पर निर्भर है और न ही इटरनेट से जुड़ी है और न किसी तरह संचालित है, जिससे कोई हैक कर सके। वैसे तो इसे प्रयोग के स्तर पर केरल के परूर विधानसभा क्षेत्र में 1982 मेें किया गया लेकिन 2004 के लोकसभा का चुनाव पूरी तरह से ईवीएम से हुआ, जिसमें भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार हारी और कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए की सरकार बनी। यही नहीं इसी ईवीएम के मतदान और गणना ने यूपीए को दोबारा सत्ता मे पहुचाया।ईवीएम का दुर्भाग्य है कि जो पक्ष हारता है, पस्त होता है वह उसकी शुचिता पर सवाल उठाता है और कागज के बैलेट से मतदान की मांग दोहराने लगता है। विदेशों और विकसित देशों के उदाहरण देने लगता है। लेकिन उसकी दलीलें न तो अदालतों और न ही चुनाव आयोग के गले उतरती हैं। सुप्रीम कोर्ट का सबसे ताजा फैेेेेेेेेसला 26 नवंबर 2024 का था ेिजसमें दो सदस्यीय पीठ ने याचिकाकर्ता से कहा जीते तो ठीक, हारे तो ईवीएम में गडबड़ी। पीठ ने यहां तक कहा कि आप अमेरिकी अरबपति एलन मस्क के उस बयान से आगे निकलिए जिसमें उन्होंने कहा था कि ईवीएम को हैक किया जा सकता है। हालांकि उन्हीं एलन मस्क ने बाद में एक दिन में ही भारत में ईवीएम के जरिए 60 करोड़ मतों की गिनती र्का प्रशंसापूर्ण उल्लेख करते हुए अमेरिका राष्ट्पति के चुनाव में धीमी मतगणना पर तंज कसा था। ऐसे ही चुनाव आयोग ने कितनी बार राजनीतिक दलों का बुलाकर कहा कि आप अपनी आपत्ति दर्ज कराइए और ईवीएम को हैक कर दिखाइए।
इस कड़ी में महाराष्ट् की हार का रोना लेकर 3 दिसंबर 2024 को जब कांग्रेस शिष्टमंडल चुनाव आयोग से मिला तो उसने आयोग के सामने महाराष्टृ के वोटर लिस्ट में लोकसभा चुनाव मेें नए मतदाताओं के नाम जुड़ने और पुरानों के कटने का मुद्दा ही प्रमुखता से उठाया, न कि ईवीएम ़से मतदान का। इसके विपरीत कांग्रेस अध्यक्ष मल्ल्किार्जुन खडगे से लेकर तमाम कांग्रेेसी और विपक्ष के नेता हरियाणा और महाराष्ट् को लेकर ईवीएम की बजाए उस बैलेट से चुनाव कराने की मांग और जनआंदोलन चलाने की बात करते हैं, जिसने भारतीय चुनावों को कितनी बार रक्तरंजित और कलिंकत किया है और उसकी याद कर रूह कांप जाती है।
दरअसल विभिन्न राजनीतिक दल अपने वोटबैंक को बचाए रखने के बाद निर्णायक बढ़़त बनाने के लिए अलग- अलग चुनाव में अपने नए ऩरेटिव गढ़ता है और उसे जब स्फलता मिल जाती है, तो उसे तुरुप का इक्का मानकर अगले चुनाव में इस्तेमाल करता है वह जब नहीं चलता, तब अपने कोर समर्थकों को भरमाए और बचाए रखने के लिए हार के ठीकरे के लिए कोई न कोई सर तलाशता है और पराजित पक्ष के लिए ईवीएम सबसे आसान टारगेट होता है। कांग्रेस को संविधाने और आरक्षण खतरे में नरेटिव का ेिजतना लाभ लोकसभा के चुनाव में मिला, उतना जब हरियाणा और महाराष्टृ के चुनाव में नहीं मिला, तो ईवीएम पर उतर आयी। यही भाजपा के साथ हुआ और जब इंडिया शाइन्स नहीं चला तो लालकृष्ण आडवानी को भी ईवीएम में खामी नजर आयी। पश्चिम बंगाल में लोकसभा चुनाव में जब भाजपा को अप्रत्याशित सफलता मिली और 2024 में नहीं दोहरा सकी तो उसका दोष चुनावी हिंसा पर मढ़ दिया। पुराने नैरेटिव किस तरह घ्वस्त होते हैं इसे इस बात से समझा जा सकता है, उत्तर प्रदेश में भाजपा को बाबरी ढांचा गिरने के बाद और अयोध्या में राममंदिर बनने के बाद क्या मिला, और तो और भाजपा अयोघ्या की लोकसभा सीट तक नहीं बचा पायी।
जहां तक कितने देश ईवीएम के जरिए चुनाव करा रहे हैं तो यह सही है कि लोकतांत्रिक व्यवस्था वाले देशों में इसकी संख्या अधिक नहीं है। ब्राजील सहित दक्षिण अमेरिेेकी देशों सहित दस ही ऐसे ही देश है जहां से ईवीएम से चुनाव होते हैं और लगभग इतने ही देश हैं जो इसे प्रायोगिक स्तर पर परख रहे हैं अपनाना चाहते हैंे। अमेरिका और योरोप के जो देश ईवीएम को लेकर ज्यादा उत्सुक नहीं है, उसकी वजह यह है कि वहां न तो मतदाताओं की संखा इतनी बडी है और न ही वहां के चुनावों ने अस्सी और नब्बे के दशक के भारतीय चुनावों का हिंसक रूप देखा है। योरोप की तुलना में आबादी के हिसाब से बड़े हमारे पडो़सी पाकिस्तान हो या बंगला देश बीच में फौजी हुकूमतों के चलते वहां लोकतंत्र की जड़ें कभी मजबूत नहीं हो सकीं। तथापि इमरान खान की सरकार ने इसकी मंशा जाहिर की थी, लेकिन पीटीआई सरकार तीन साल में ही गिर गई और पहल रंग न ला सकी।
लंबी गुलामी के चलते हमारी यह हीन मानसिकता बन गई है कि हम टैक्नोलाजी या अर्थव्यवस्था किसी नए चलन का प्रयोग तब ही कर सकते हैं, जब पश्चिम ने उस पर मुहर लगा दी हो। जब कि सच यह है कि हमें इस बात पर गर्व होना चाहिए कि हम टैक्नोलाजी के माध्यम से चुनाव से लेकर आर्थिक भ्रष्टाचार तक रोकने में कामयाब हो रहे हैं। यह वक्त का तकाजा है कि हम ईवीएम को और उन्नत करें और वीवीपैट सहित उसमें ऐसी व्यवस्था करें जिससे जायज शंकाएं निर्मूल हो। लेकिन भारतीय राजनीति में अचछे चलन स्थाई्र होना इतना सरल कहां होता हैं। एक बार पुनः टीएन शेषन के दौर को याद करते हुए ईवीएम तू चीज बड़ी है मस्त मस्त। हारे नेता हैं पस्त-पस्त। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट और चुनाव आयोग बैलेट की मुस्तैदी बरकरार रहना भारतीय लोकतंत्र के सुखद भविष्य की गारंटी होगी।

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